January 7, 2009

बचपन को चबा रहा है गुटखा

इंडो-एशियन न्यूज सर्विसलखनऊ। बारह साल के राहुल का मुंह अब पूरा नहीं खुल पाता। उसके मुंह में छाले पड़े हुए हैं जो अब धीरे-धीरे जख्म का बनते जा रहे हैं। उसे खाना तो दूर चाय और ठंडा पानी पीने में भी दिक्कत होती है लेकिन फिर भी वह पान-मसाले की कम से कम पंद्रह पुड़िया रोज खा जाता है।चिनहट के प्रकाश कॉन्वेंट के कक्षा आठ में पढ़ने वाले राहुल को गुटखा खाने की यह आदत होश सम्भालते ही लगी थी। वह बताता है स्कूल के कुछ छात्रों की देखा-देखी उसने भी गुटखा खाना शुरू कर दिया।
शुरुआत में वह पान-मसाले का एक पाउच थोड़ा-थोड़ा करके खाता था, धीरे-धीरे आदत बढ़ती गई। अब वह खाने के बगैर तो रह सकता है मगर मसाले के बिना नहीं।पैसा कहां से लाते हो? घर पर डांट नहीं पड़ती? सवालों के जवाब में राहुल कहता है, “पहले बहुत मार पड़ती थी। रही बात पैसे की तो बस किसी न किसी बहाने से व्यवस्था हो जाती है।”
यह एक अकेले राहुल की कहानी नहीं है। गली-कूचों से लेकर चौराहों तक हर मोड़ पर पान-मसाले की आसान बिक्री ने मासूम बचपन को भी काफी हद तक अपने शिकंजे में जकड़ लिया है। स्कूल के आसपास बेतरतीब लगी पान की गुमटियों पर इस बचपन को कैंसर की तरफ कदम बढ़ाते कभी भी देखा जा सकता है। तोतली जबान अब टॉफी, चॉकलेट की बजाय गुटके की आदी होती जा रही है।पहले पान मसाला व तम्बाकू का प्रयोग करने वाले और इनके आदी हो गए लोगों पर अमेरिकी पर्यावरण संरक्षण एजेंसी ने एक सर्वेक्षण कराया था। इसके नतीजे चौंकाने वाले थे।भारत की सबसे घनी आबादी वाले उत्तर प्रदेश के संबध में ईपीए की रिपोर्ट बताती है कि यहां 15 वर्ष से कम आयु के दो लाख 45 हजार ग्रामीण इलाकों के तथा 16,900 शहरी क्षेत्रों के बच्चे ऐसे हैं जो तम्बाकू या गुटखा के पूरी तरह आदी हो चुके हैं।चौंकाने वाली बात यह भी है कि तम्बाकू के लती इन बच्चों व युवाओं में 66 हजार अनुसूचित जनजाति से तथा 67 लाख अनुसूचित जाति के परिवार से होते हैं। इन सब में एक लाख 11 हजार 490 तम्बाकू सेवन के चलते प्रति वर्ष मौत को गले लगा लेते हैं।ऐसा नहीं है कि ग्रामीण या गरीब तबके से जुड़े बच्चे ही पान मसाले की लत के आदी हो रहे हैं। आभिजात्य वर्ग व मध्यम वर्गीय घर के बच्चे भी इसकी चपेट में आसानी से देखे जा सकते हैं।प्रदेश में कैंसर के बारे में वर्षों से निःशुल्क जागरूकता अभियान चला रहे लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल विश्वविद्यालय में प्रोफेसर और विकिरण विभाग के अध्यक्ष डॉ. मोहन चंद पंत कहते हैं कि अगर सरकार इस ओर जल्द जागरूक नहीं हुई तो यकीनन भावी पीढ़ी का भविष्य 15-20 साल बाद भयावह होगा।

मध्‍यप्रदेश के एक गांव में गुटखा खाने पर जुर्माना
इंदौर। मध्यप्रदेश के खंडवा जिले के चिंचगोहना भैरोखेडा गांव आज कल सुर्खियों में है। इस गांव में तम्बाकू और इससे बने उत्पादों पर प्रतिबंध लगा हुआ है। जिसकी चर्चा अब विश्व स्वास्थ्य संगठन में भी हो रही है। उल्लेखनीय है कि यहां के ग्रामीणों द्वारा तम्बाकू और उसके बने उत्पादों पर स्वप्रेरणा से लगाए गए प्रतिबंध को विश्व स्वास्थ्य संगठन की दक्षिण एशिया पर केंद्रित एक रिपोर्ट में मिसाल के तौर पर पेश किया गया है। तम्बाकू रहित दक्षिण एशिया क्षेत्र में भारत के बारे में संगठन की रिपोर्ट में खंडवा जिले के इस गांव की पहल का उल्लेख किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार 40 वर्षीय महिला की मुंह के कैंसर के कारण मृत्यु हो जाने के हादसे से गांववासी दहल गए। महिला तम्बाकू का गुटखा खाने की आदी थी। इसके बाद ही ग्रामीणों ने एक बैठक कर तय किया कि गांव में गुटखा आदि सामग्री की बिक्री नहीं होनी चाहिए जो बीमारी और मौत का कारण बने। इसके बाद गांव के 30 पान और गुमटी वालों ने गुटखा आदि की बिक्री बंद करने का संकल्प लिया। इंदौर स्थित शासकीय डेन्टल कालेज के प्राचार्य बी.एम श्रीवास्तव ने बताया कि गांव में गुटखा खाते हुए पकड़े जाने पर जुर्माने का प्रावधान भी किया गया है। उन्होंने बताया कि इस रिपोर्ट के अलावा भी खंडवा जिले के इस उदाहरण का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जिक्र हुआ है।

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