Workshop in Bhopal, October 8, 2008
Following the briefings agenda throughout Hindi speaking states of India, IMCFJ organized its third workshop on Tobacco control in the state capital of Madhya Pradesh, Bhopal, on Wednesday, October 8th 2008. About 50 confirmed and students journalists attended the conference.
The wrokshop agenda was similar to the former ones in Varanasi and Dehradun, but the atmosphere was definitely more into debating on how and what journalists should write about tobacco, in dynamic exchanges of ideas between the speakers and the participants.
The debates inspired aslo the students as for Mr. Himanshu Bajpai from Makhan Lal Chaturvedi University of Bhopal, who wrote the following report on his blog, which link is available in the link list on the right side of this window :
धुंआ न निकालियो लब से पिया ...........
२००६ में बिपाशा बासु ने ओंकारा में जो बीडी जलाई थी उसके कश में पूरा हिन्दुस्तान झूमा था । गुलज़ार साहब को और सुनिधि चौहान को इस गाने ने सिने अवार्ड्स भी दिलाया था । ये उस साल का सबसे बड़ा हिट नंबर था , जिसने उस साल f.m. चैनलों और संगीत कंपनियों को १ करोड़ से जयादा मुनाफा दिया था लेकिन इस ओंकारा की ये बीडी सिर्फ़ एक साल यानी २००६ तक ही सुलगी थी। जबकि वो बीडी जिसका सुट्टा आम भारतीय लगाते हैं उसकी आग ओंकारा की बिल्लो चमन बहार की जिगर की आग से भी बड़ी है । जिसमें हर साल जलते हैं करीब दस लाख आदमी और तीस हज़ार करोड़ रुपए ।लोगों को बीडी से जुड़े मिथक , भ्रांतियों और खतरों के बारे में जागरूक करने का जिम्मा इस बार पत्रकारों ने लिया है । लखनऊ स्थित इंडियन सेंटर ऑफ़ मीडिया फॉर जर्नलिस्ट ने कुछ एन जी ओ और फ्रांस की इंटरनेशनल यूनियन अगेंस्ट टीबी एंड लंग दिजीस के साथ करने के लिए प्रेरित करने और इसके लिए जानकारी और संसाधन उपलब्ध कराने का काम कार्यशाला आयोजन शुरू किया है . इस मुहीम को नाम दिया गया है जर्नलिस्ट to जर्नलिस्ट . लखनऊ और बनारस के बाद 8 अक्टूबर को श्रंखला का आयोजन भोपाल में हुआ, आयोजन में लखनऊ जनसत्ता के वरिष्ठ पत्रकार अम्बरीश कुमार , हिंदुस्तान के दयाशंकर शुक्ला सागर और जामिया मिलिया के शाहिद जम्माल सहित बहुत से पत्रकारों ने हिस्सा लिया , जिसमे बीडी से जुड़े कई खतरनाक तथ्य सामने आएई आर सी के भारत पर लिखे गए आलेख के मुताबिक भारत में हर साल ७५ खरब से १२० खरब बीड़ी धुंए के रूप में उड़ा दी जाती है । देश में उत्पादित कुल तम्बाकू का ४८ % हिस्सा बीडी में उपयोग होता है . भारत में ये भ्रान्ति भी आम है की बीडी सिग्रत्ते से कम नुक्सान दायक है , इंटरनेशनल जर्नल ऑफ़ एपिदेमियोलोजी के अनुसार बीडी में जोखिम 1.६४ प्रतिशत है जबकि सिगरेट में १.३७ % । सिगरेट के मुकाबले बीडी में ३ गुना ज्यादा तारकोल और निकोटिन होता है और इसे जलाये रखने के लिए ज्यादा गहरे कश लगाए जाते हैं । सिगरेट में लगाया जाने वाला फिल्टर भी सिगरेट के नुक्सान को बिल्कुल कम नही करता और सिगरेट और बीडी के चलते हर ८ सेकेंड में दुनिया का एक आदमी दम तोड़ता है , जबकि भारत में एक सिगरेट के स्थान पर १० बीडी पी jaatin हैं . भारत के तम्बाकू उत्पादक राज्यों में तम्बाकू का रकबा एक दम से बढ़ा है क्यूंकि इसमें लाभ ज्यादा है और इसीलिए तम्बाकू से जुड़े ज्यादातर किसान करोर्पति है । एक और चौकाने वाली बात ये है की सिगरेट पर उत्पादन शुल्क भार जहाँ 1.०९२ रुपए है वहीँ बीडी पर 0.००७ है । यही कारण है की बीडी सिगरेट पर भारी है , भारत में बीडी एक बहुत बड़ा महामानव है , जिसकी गंभीरता पर आमतौर पर विचार नही किया जाता लेकिन अगली बार जब आप बीडी कओ मुह से लगायें तो उससे पहले इस बात पर गौर करें की भारत में सबसे ज्यादा लोगों की मौत का कारण बीडी , सिगरेट का धुंआ है
Following the briefings agenda throughout Hindi speaking states of India, IMCFJ organized its third workshop on Tobacco control in the state capital of Madhya Pradesh, Bhopal, on Wednesday, October 8th 2008. About 50 confirmed and students journalists attended the conference.
The wrokshop agenda was similar to the former ones in Varanasi and Dehradun, but the atmosphere was definitely more into debating on how and what journalists should write about tobacco, in dynamic exchanges of ideas between the speakers and the participants.
The debates inspired aslo the students as for Mr. Himanshu Bajpai from Makhan Lal Chaturvedi University of Bhopal, who wrote the following report on his blog, which link is available in the link list on the right side of this window :
धुंआ न निकालियो लब से पिया ...........
२००६ में बिपाशा बासु ने ओंकारा में जो बीडी जलाई थी उसके कश में पूरा हिन्दुस्तान झूमा था । गुलज़ार साहब को और सुनिधि चौहान को इस गाने ने सिने अवार्ड्स भी दिलाया था । ये उस साल का सबसे बड़ा हिट नंबर था , जिसने उस साल f.m. चैनलों और संगीत कंपनियों को १ करोड़ से जयादा मुनाफा दिया था लेकिन इस ओंकारा की ये बीडी सिर्फ़ एक साल यानी २००६ तक ही सुलगी थी। जबकि वो बीडी जिसका सुट्टा आम भारतीय लगाते हैं उसकी आग ओंकारा की बिल्लो चमन बहार की जिगर की आग से भी बड़ी है । जिसमें हर साल जलते हैं करीब दस लाख आदमी और तीस हज़ार करोड़ रुपए ।लोगों को बीडी से जुड़े मिथक , भ्रांतियों और खतरों के बारे में जागरूक करने का जिम्मा इस बार पत्रकारों ने लिया है । लखनऊ स्थित इंडियन सेंटर ऑफ़ मीडिया फॉर जर्नलिस्ट ने कुछ एन जी ओ और फ्रांस की इंटरनेशनल यूनियन अगेंस्ट टीबी एंड लंग दिजीस के साथ करने के लिए प्रेरित करने और इसके लिए जानकारी और संसाधन उपलब्ध कराने का काम कार्यशाला आयोजन शुरू किया है . इस मुहीम को नाम दिया गया है जर्नलिस्ट to जर्नलिस्ट . लखनऊ और बनारस के बाद 8 अक्टूबर को श्रंखला का आयोजन भोपाल में हुआ, आयोजन में लखनऊ जनसत्ता के वरिष्ठ पत्रकार अम्बरीश कुमार , हिंदुस्तान के दयाशंकर शुक्ला सागर और जामिया मिलिया के शाहिद जम्माल सहित बहुत से पत्रकारों ने हिस्सा लिया , जिसमे बीडी से जुड़े कई खतरनाक तथ्य सामने आएई आर सी के भारत पर लिखे गए आलेख के मुताबिक भारत में हर साल ७५ खरब से १२० खरब बीड़ी धुंए के रूप में उड़ा दी जाती है । देश में उत्पादित कुल तम्बाकू का ४८ % हिस्सा बीडी में उपयोग होता है . भारत में ये भ्रान्ति भी आम है की बीडी सिग्रत्ते से कम नुक्सान दायक है , इंटरनेशनल जर्नल ऑफ़ एपिदेमियोलोजी के अनुसार बीडी में जोखिम 1.६४ प्रतिशत है जबकि सिगरेट में १.३७ % । सिगरेट के मुकाबले बीडी में ३ गुना ज्यादा तारकोल और निकोटिन होता है और इसे जलाये रखने के लिए ज्यादा गहरे कश लगाए जाते हैं । सिगरेट में लगाया जाने वाला फिल्टर भी सिगरेट के नुक्सान को बिल्कुल कम नही करता और सिगरेट और बीडी के चलते हर ८ सेकेंड में दुनिया का एक आदमी दम तोड़ता है , जबकि भारत में एक सिगरेट के स्थान पर १० बीडी पी jaatin हैं . भारत के तम्बाकू उत्पादक राज्यों में तम्बाकू का रकबा एक दम से बढ़ा है क्यूंकि इसमें लाभ ज्यादा है और इसीलिए तम्बाकू से जुड़े ज्यादातर किसान करोर्पति है । एक और चौकाने वाली बात ये है की सिगरेट पर उत्पादन शुल्क भार जहाँ 1.०९२ रुपए है वहीँ बीडी पर 0.००७ है । यही कारण है की बीडी सिगरेट पर भारी है , भारत में बीडी एक बहुत बड़ा महामानव है , जिसकी गंभीरता पर आमतौर पर विचार नही किया जाता लेकिन अगली बार जब आप बीडी कओ मुह से लगायें तो उससे पहले इस बात पर गौर करें की भारत में सबसे ज्यादा लोगों की मौत का कारण बीडी , सिगरेट का धुंआ है
1 comment:
sagar shukla to din bhar khaini ek tarah ka raw tobacco khate rahte hai aur tambhako per bhasan dete hai .yeh dohara mandand nahi hai.
aise logo ka aage laye jo aadarsh ban sake.
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